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________________ (२२) जैन जाति महोदय. में सुना दिया जिससे आम जनता को यह ख्याल हो गया कि जैन सूत्रों मे मूर्ति पूजा का विधिविधान जरूर है पर कितनेक लोगोंने यह शिकायत भीलाड़े पूज्यजी के पास की। वहाँ आज्ञा मिली कि शीघ्र रतलाम पहुँचो। तदनुसार उठाड़ा, भींडर, कानोड़, सादड़ी (मेवाड़) छोटी सादड़ी, मन्दसौर जावरा होते हुए श्राप रतलाम पहुँच गये । वहाँ अमरचंद्रनी पीतलिया से भी मूर्ति पूजा के विषयपर सूक्ष्म चर्चा चलती रही । आपने सिद्धांतोंके ऐसे पाठ वतलाये कि सेठजीको चुपचाप होना पड़ा। आप वापस जावरे पधारकर पुज्यजी से मिले । श्राप को पूछनेपर मूर्ति के विषय में केवल गोलमाल उत्तर मिला । इसी सम्बन्ध में आप नगरी में शोभालालजी से मिले उन की श्रद्धा तो मूर्ति पूजा की ओर ही थी। इस के पश्चात् श्राप छोटी सादड़ी पधारे । इसी बीच में तेरहपंथियों के साथ शास्त्रार्थ हुश्रा उन्हें पराजित कर आपश्रीने अपनी बुद्धिबलसे अपूर्व विजय प्राप्त की थी। . विक्रम संवत् १९७१ का चातुर्मास (छोटी सादड़ी)। आपश्री का आठवाँ चातुर्मास मेवाड़ प्रान्त के अन्तर्गत छोटी सादड़ी में हुआ । जिस सोध की धुन आप को लगी हुई थी उस में आप को पूर्ण सफलता इसी वर्ष में प्राप्त हुई । स्थानीय सेठ चन्दनमलजी नागोरी के यहाँ से ज्ञाता, उपासकदश, ऊपाई, भगवती और जीवाभिगम प्रादि सूत्रों की प्रतियाँ लाकर आपने उनकी टीका पर मननपूर्वक निष्पक्षभाव से विचार किया तो आप को ज्ञात हुना कि जैन सिद्धान्त में-मूर्ति पूजा मोक्ष का कारण है। आपने इसी
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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