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( २० ) जैन जाति महोदय प्रकरण क्ट्ठा.
(२) हमारे प्राचार्योंने महाजन संघ की स्थापना कर विशाल भावना से उस का चिरकाल पोषण और वृद्धि करी थी। आज हमारी संकुचित भावनाने उन संघ को तोड फोड कर टुकडे २ कर दिए, और वह भिन्न २ जातियों में विभक्त हो क्लेश कदाग्रह का घर बन कर हमारी अल्प संख्या में बडा भारी सहायक हुवा है।
(३) हमारे पूर्वाचार्यों की दीर्घदृष्टीने हमारा महोदय किया आज हमारी अदूरदर्शीताने हमारा अधःपतन किया।
(४) हमारे आचार्यों की परोपकार परायणताने विश्व को अपना बना लिया था, आज हमारी स्वार्थवृत्तिने हमारा सत्यानाश कर डाला । अर्थात् एक देवगुरु के उपासकों में उच्च नीच का भेद भाव पैदा किया है तो एक हमारी स्वार्थवृत्तिने ही किया न की पूर्वाचार्यने । .
(५) हमारे प्राचार्योंने भिन्न २ मत-पंथ के मनुष्यों को एकत्र कर उनके आपसी संबन्ध जोड आपस में प्रेम ऐक्यता की वृद्धि कर जैन बनाए । आज हम एक ही धर्म पालने वाले एक दूसरों के साथ संबन्ध तोड के उनको आपसे भिन्न समझने लगे इत्यादि अनेक कारणों से हमारी अल्प संख्या रह गई और फीर भी होती जा रही है अर्थात् जाति मान में धर्म रह जाने के खास कारण हम ही हैं न कि पूर्वाचार्य । बल्कि पूर्वाचार्यों ने तो हमपर बड़ा भारी उपकार किया कि आज हम जैन कहलाने में भाग्यशाली बने हैं।