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________________ लेखक का परिचय. थे तथापि पिछले ५ वर्षों में आपने साधु होकर तो ज्ञानाभ्यास में कमाल कर दिखलाया। आपको इस पंथ पर कई भर्म भी प्रकट होने लगे । आपने इस वर्ष में ज्ञान जिज्ञासुओं को पढ़ाने का कार्य भी शुरु कर दिया । भारत वर्ष के लोगों की यह साधारण टेव है कि थोड़ा ज्ञान पाते ही वे गुमानी हो जाते हैं तथा अ. पने को अपने दूसरे साथियों में चार इंच ऊँचा समझते है पर आपश्री को तो घमंडने छूआ तक भी नहीं । आपका उद्देश केवल ज्ञान सञ्चय करना ही नहीं अपित ज्ञान प्रचार करना भी था। इसी कारण से इस चातुर्मास में आपने कई लोगों को श्री भगवती सूत्र की वाचना दी। सेठजी चन्दनमलजी व लोढाजी ढढाजी और सिंधिजी वगैरह श्रापकी वाचना पर बड़े ही मुग्ध थे। इसके अतिरिक्त आपने थोकड़े लिखने का कार्य भी इस चातुर्मास में प्रारम्भ कर दिया । साथ ही कई श्रावकों को भी ज्ञान सिखाना प्रारम्भ किया। ___ इस चातुर्मास में आपने तपस्या इस प्रकार की:-अठाई १, पचोला १, तेला ५ । छुटकर उपवास तो आपने कई किये थे । व्याख्यान में आपश्री कइ समय तक प्रातःकाल श्री ज्ञाताजी सूत्र तथा मध्याह्न में श्री भगवती सूत्र की वाचना किया करते थे । व्याख्यान में तो उपदेश की झड़ी लगजाती थी मानो ज्ञान की पीयूष वर्षा हो रही हो। अजमेर से आप सीधे ब्यावर पधारे। इस नगर में भी आप व्या.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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