________________
जैन जातियों.
. ( २३७)
जैन जातियों ?
-* *जैनाचार्य श्री स्वयंप्रभसूरि और आचार्यश्री रत्नप्रभसूरि आदि भाचार्योने " महाजनसंघ " की स्थापना की कालान्तर उन संघ से नगर के नामपर तीन साखाए हुइ ( १ ) उपकेश (पोसवाल) वंश (२) प्राग्वाट (पोरवाड) वंश (३) श्रीमालवंश. इनका इतिहास तीसरे प्रकरण में श्राप पढ़ चूके है । बाद उपकेश वंश में सब से पहले १८ गौत्र हुए उन मूल गोत्रों से ४९८ जातिये बन गई उनके नाम मात्र श्राप पोथा प्रकरण में पढ़ ही आये है पर वह मूल गौत्र ले किस कारण किस समय किस ग्राम से और इनका श्रादि पुरुष कौन ? तथा इन मूल गोत्र और साखा प्रतिसाखा के सिवाय भी जैनाचार्योंने अनेक राजपुतादि को प्रतिबोध दे देकर जन महाजनसंघ में मिलाते गये उन जातियों की संख्या १४४४ ले भी अधिक थी उन सब का इतिहास लिखना अन्य बडा होने के भय से शेष बाकी रहजाता है कारण इस प्रथम खण्ड में भगवान् वीर प्रभु से ४०० वर्षे तक का इतिहास लिखा गया है शेष दूमरा खण्ड में लिम्बा जावेगा निम्नलिखित जैन जातियों से कितनीक जातियों का इतिहास तो हमने संग्रह किया है तथापि जैन जातियों के प्रत्येक