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________________ जैन जातियों का महोदय. - ( २३५ ) नहीं रही है । जैन जातियों की उन्नति के मार्ग में रोड़ा अटक गया है । हास अपने चरम सीमा तक होने लगा। बीच बीच में दशा सुधारने के लिये तथा जैन जातियों की अभिवृद्धि के लिये भनेक जैनाचार्योने उपाय और प्रयत्न किये। समय समय पर अनेक राजाओं और गजपुतों आदि को इतर धर्म से प्रतिबोध दे दे कर जैन जातियों में मिलाते गये इस से जैन जातियों की संख्या चिरकाल तक अधिक बनी रही तथापि पूर्व की भान्ती उस दशा का सुधार नहीं हुआ इतने में तो जैन समाज में अनेक मत्त मतान्तरों का प्रादुर्भाव हुआ और वह रही सही जैन जातियों अनेक विभागों में विभाजित हो अपनी अमूल्य शक्तियों और उच्चादर्श से भी हाथ धो बैठी इससे ही कई लोगों को यह कहने का समय मिलगया कि जैनाचार्योंने यह बुरा किया कि राजपूत जैसे वीर बहादुर वर्ण को तोड़ जैन जातियों बना उनको कायर और कमजोर बना दिया । वास्तव यह कहना कितना भ्रमनपूर्वक है वह हम आगे छठे प्रकरण में विस्तारपूर्वक बतलावेंगें। __एक तरफ तो पूर्वोक्त कारणों से जैन जातियों का ह्रास होना प्रारम्भ हुआ था दूसरी ओर ऐसे ऐसे असाध्य रोग लगने शरू हुए कि जो जैन जातियाँ के खून को जाँक बनकर निरन्तर चूस रहे हैं। ऐसी ऐसी नाशकारी प्रथाओंने जैन जातियों में घर कर दिया कि उन बाधा कर्ता रूढियाँ के कारण जैनजातियाँ अपना विकास तक नहीं कर सकी है। ये रूढियाँ नित्य नई नई बनकर कैसी कैसी आफत उपस्थिा कर रही है वह हम आगे
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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