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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
पूजक था । यूरोप में तो विक्रम की चौदहवीं शताब्दि में भी मूर्त्तिपूजा विद्यमान थी । अष्ट्रेलिया और अमेरिका में तो भूमि के खोदने पर अब भी कई मूर्तियों निकल रही हैं। वे निकली हुई सब मूर्त्तियों जैनों की हैं। मक्का में भी एक जैन मन्दिर विद्यमान था । पेगम्बर महमूद के जन्म के पश्चात् वे मूर्तियों महुआ शेहर मधुमति) में पहुँचाई गई थीं। इस से सिद्ध होता है कि सम्प्रति नरेशने अवश्य अनार्य देशों में जैन धर्म का होगा । उसने जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा भी करवाई थी । राजा सम्प्रति के राज्य काल में जैन धर्म का प्रचार आर्य और अनार्य दोनों देशों में था ।
प्रचुर प्रचार किया
उस समय सब जैनी मिलाकर चालीस कोड़ की संख्या में थे । क्यों न हों ? जब शिशुनागवंशी नन्दवंशी और मौर्य चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार और महाराजा सम्प्रति जैसे प्रतापशाली नृपतिगण जैन धर्म के प्रचार के हेतु कटिबद्ध थे। ऐसी दशा में चालीस क्रोड़ जैनों का होना किसी भी प्रकार से आश्चर्यजनक नहीं है । अर्वाचीन समय के इतिहासकार भी हमारी उस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी समय जैनियों की संख्या चालीस फोड़ के लगभग थी । यथा
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46 भारत में पहिले ४०००००००० जैन थे। इसी मत से निकलकर लोग अन्य मतों में प्रविष्ट होने लगे । इसी कारण से इनकी संख्या घट गई है। यह धर्म अतिप्राचीन है। इस धर्म के नियम सब उत्तम हैं जिनसे देश को असीम लाभ पहुँचा है। " - बाबू कृष्णालाल बनर्जी ।