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( १७८) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
श्रत्वैवं साधु वचन । माचार्य सुहस्तिनः ।। भूयोऽपि प्रेषयामासुर। न्यान न्यास्तपस्विनः। १७५ । ततस्ते भद्रका जातः । साधूनां देशनाश्रुतेः । तत् प्रभृत्येव ते सर्वे। निशीथेऽपि यथोहितम् । १७६ । एवं सम्प्रति राजेन । यतिनां संप्रवर्तितः। विहारोऽनार्यदेशेषु शासनोनतिमिच्छता । १७७ ।
" नवतत्वभाष्ये" समणभउ भाविएसु तेसुं देसेसुएसणा इहिं । साहु सुहं विहारियां तेणते भद्दया जाया।
(निशीथचूर्णि) महाराजा सम्प्रतिने सुयोग्य पुरुषों को चुनकर उन्हें साधुओं के प्राचार और व्यवहार से परिचित किये । जब वे पूरी तरहसे जैन मुनि के कर्त्तव्य कम्मों को सीख गये तो राजाने उन्हें मुनियों का वेष भी पहिनवा दिया । इस तरह से अनार्य देश को मुनिविहार के योग्य बनाने के हित ही इन नकली साधुओं को सम्प्रति नरेशने अनार्यदेश में भेज दिये । साथ कुछ योद्धाओं को भी भेज दिया ताकि वे आवश्यक्ता पड़ने पर सहायता पहुँचा सकें । मुनिवेषधारी पुरुषोंने जाकर अनार्यदेश में जैन तत्वों का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को जैन मुनियों के माचार
और व्यवहार की बातों का विशेष विवेचनसहित उपदेश दिया । इस प्रकार से प्रयत्न करने पर जैन मुनियों के मार्ग में पानेवाली भनेक बाधाएँ दूर होती रहीं।