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( १६५) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. में संग्रह किये हैं। यह पुस्तक अंगरेजी भाषा में लिखी गई है। जैन गजट आफिस, ८ अम्मन कुवेल स्ट्रीट, मदरास के पते से मंगाने पर मिल सकती है। इस पुस्तक में चन्द्रगुप्त का जैनी होना प्रमाणित है । अशोक भी अपनी तरुण वय में जैनी माना गया है। इस प्रकार नंद वंश और चन्द्रगुप्त मौर्य का नैनी होना सिद्ध है। इन सब का वर्णन श्रवण वेलगोल के शिला लेखों. ( Early faith of Ashok Jainism by Dr. Thomas South Indian Jainism Volume II page 39 ), राज तरंगिणी और प्राइन ई अकबरी में मिल सकता है। पाठकों को चाहिये कि उपरोक्त पुस्तकें मंगाकर इन बातों से जरूर जानकारी प्राप्त करें। आगे और भी देखिये भिन्न भिन्न विद्वानों का क्या मत है ?
डाक्टा ल्यूमन Vienna Oriental Journal VII 382 में श्रुत केवली भद्रबाहु स्वामी की दक्षिण की यात्रा को स्वीकार
___ डाक्टर हनिले Indian Antiquary XXI 59, 60 मे तथा डाक्टर टामस साहब अपनी पुस्तक Jainism of the Early Faith of Asoka page 23 में लिखते है-" चन्द्रगुप्त एक जैन समाज का योग्य व्यक्ति था जैन ग्रंथकारोंने एक स्वयं सिद्ध और सर्वत्र विख्यात बात का वर्णन करते उपरोक्त कथन को ही लिखा है जिस के लिये किसी भी प्रकार के अनुमान या प्रमाण देने की भावश्यक्ता नहीं ज्ञात होती । इस विषय में लेखों के प्रमाण बहुत प्राचीन है तथा साधारणतया संदेह रहित हैं । मैगस्थनीज (जो चन्द्रगुप्त