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( १६२) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. मौर्य वंश उदय होते ही उन्नति के सर्वोच्च सोपान पर बात की बात में पहुँच गया । नीतिनिपुण चाणक्य की सहायता से मौर्य कुल मुकुट महाराजा श्री चंद्रगुप्तने नंदवंश के पश्चात् मगध राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली । चन्द्रगुप्तने अपनी कार्य कुशलता
और निर्भीक वीरता से इतनी सफलता प्राप्त की कि आप भारत सम्राट की पदवी से विभूषित हुए । इतिहास के काल में तो आप हीने सबसे पहिले सम्राट की उपाधि प्राप्त की थी।
महाराजा चंद्रगुप्तने प्रीस के ( युनानी) बादशाह सिकन्दर को तो इस प्रकार पराजित किया कि उसने जीवनभर भारत की
ओर आँख उठाकर नहीं देखा। सिकन्दर का देहान्त ई. सं. ३२३ पूर्व हुआ । इसके पश्चात् सेल्यूकसने भारतपर चढाई की। पर वह भी विफल मनोरथ हुआ । उसने चन्द्रगुप्त से एक ऐसी लज्जा स्पद संधि की कि काबुल कन्धीहार और हिरत तक का देश चन्द्रगुप्त को मिल गया। सेल्यूकसने चिर शान्ति स्थाई रखने के हेतु अपनी पुत्रि का विवाह भी चन्द्रगुप्त के साथ कर दिया । चन्द्रगुप्तने अपने साम्राज्य का विस्तार भारत के बाहिर भी किया था | सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य शूरवीर एवं रणबांकुरा साहसी योडा था । यह राजनीति विशारद होने के कारण अपने साम्राज्य में सर्व प्रकार से शांति रखने में समर्थ था।
जैन ग्रंथकारोंने लिखा है कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जैनी था । उसके गुरु मंतिम श्रुत केवली आचार्य भद्रबाहुस्वामी थे । चन्द्रगुप्तने जैनधर्म का खूब प्रचार किया था। उसने काबुल,