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मौर्य स. प्रचार किया हो ऐसा मालूम होता है। इतिहास से विदित होता है कि मगध की गद्दी पर नंदवंश के नौ गजाभोंने राज्य किया है। वे नंदवंशी सब राजा जैनी थे इसका प्रमाण देखियेSmith's Early History of India Page 114 में और साक्टर शेषागिरिराव ए. ए. एण्ड ए मादि मगध के नंद राजाचों को जैन लिखते हैं क्योंकि जैनधर्मी होने से वे भादीश्वर भगवान की मूर्ति को कलिङ्ग से अपनी राजधानी में ले गये थे। देखिये South India Jainism Vol. II Page 82. ... महाराजा खारवेल के शिला लेख से स्पष्ट प्रकट होता है कि नंद वंशीय नृप जैनी थे । क्योंकि उन्होंने जैन मूर्ति को बरजोरी मेजा कर मगध देश में स्थापित की थी। इस से यही सिद्ध होता है कि यह घरीना जैनधर्मोपासक था । ये राजा सेवा तथा दर्शन मादि के लिये ही जैन मूर्ति ला लाकर मन्दिर बनवाते होंगे। जैन इतिहास वेत्ताओने तो विश्वासपूर्वक लिखा है कि नंदवंशीय राजा जैनी थे | तथा इतिहास से भी यही प्रकट होता है।
सूर्य उदय होकर मध्याह तक प्रज्वलित होकर जिस प्रकार संन्या के समय शस्त हो जाता है तदनुरूप इस पवित्र भूमिपर कई राज्य उदय होकर अस्त भी हो गये । इसी प्रकार की दशा पाटलीपुत्र नगर की हुई। नंद वंश के प्रताप का सूर्य मंतिम नरेश महा पमानंद के शासन के साथ ही साथ मस्त हो गया । और इसके स्थान पर मौर्य वंश का दिवाकर देदीप्यमान हुमा ।