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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. धमाका हुमा । अगली की लकड़ी की बिल्ली नवजात शिशु पर पड़ी
और उसका कपाल फूट गया । कुँअर मर गया । राजाने कहा कि यह मेरी गलती थी कि मैंने पूरी जांच तक नहीं की । अहा ! जैन साधुने मुझे चिना भी दिया था पर मैं प्रभागा बेपरवाह रहा । जैनियों का निमित्त ज्ञान सच्चा एवं बागह मिहिर का बिल्कुल झूठा है । बागह मिहिग्ने मुझे पूग धोखा दिया । संसार भरमें यह बात प्रसिद्ध हुई कि जैन साधु सच ही कहते हैं । बाराह मिहिर का ढोंग खुल गया । अपमानित होकर उसने तापस का वेष धारण कर लिया । वह तप करता हुआ मर करके व्यन्तर देव हुा । पूर्व जन्म के द्वेष के संस्कार इस योनिमें भी बने रहे । उसने हरप्रकार से जैनों को सताने का प्रयत्न किया ।
लोगोंने जाकर प्राचार्य महागज से निवेदन किया कि एक व्यन्तर देव जैनों को खूब दुःख दे रहा है तो भद्रबाहु स्वामीने "उत्सग्गहरं" नाम का स्तोत्र बनाया और बताया कि इसके पाराधन करने से सर्व प्रकार के विघ्न दूर होते हैं । इस प्रकार के कई उपकार आपने हमारे प्रति किये जिनको भूलना श्रापको आपकी कृतघ्न सिद्ध करना होगा। आपने शासनकी अच्छी सेवा की। कई प्राणियों को दीक्षा दे सत्पथ पर लगाया । जैन मन्दिरों और विद्यालयों की प्रतिष्ठा कराने में भी आपने कसर नहीं रक्खी । आपने ग्यारह अंगपर नियुक्ति की रचना की । जो जो ग्रंथ रत्न आपने बनाये वे आजतक काम में आते हैं । उनके सिवाय भी बृहत्कल्प व्यवहार दशाश्रुत स्कंध, ओघनियुक्ति, पण्ड नियुक्ति और भद्रबाहु संहितादि अनेक ग्रंथ बनाये थे।