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( ११२) जैन बाति महोदय प्रकरण पांचवा. चोरों को लेकर उस नगर में भाया । उसने विचार किया कि जम्बुकुमार को ९९ क्रोड सुनहैये दहेज में मिले हैं तो उन्हीं को जाकर किसी प्रकार चोर कर लाना चाहिये । इसी हेतु से वह जम्बुकुमार के महलो में उसी दिन चतुराई से गुप्त रूप से पहुंच गया । जाकर क्या देखता है कि धन का और किसी का भी ध्यान नहीं है। जम्बुकुंवर अपनी नवविवाहित स्त्रियों को समझाने में तन्मय है । और वह सुरसुन्दरियों अपने पति को संसारमें रखने के लिये अनेक हेतु दे रही थी। चोरने उन की बातें सुनी : कुंवर अपनी स्त्रियों को कह रहा था कि जिस सुख के लिये तुम मुझे लुभाने का प्रयत्न कर रही हो वह सुख वास्तव में तो दुःख है। यदि तुम्हें सच्चे सुख को प्राप्त करने की इच्छा है तो मेग अनुकरण करो । त्रियोंने समझाए जाने पर कुंवर की बात मान ली और इस बात की सम्मति प्रकट की कि हम भी आठों आप के साथ ही साथ दीक्षा ग्रहण करेंगी । चोर विस्मित हुए । उन की समझ में नहीं
आया कि यह कुंवर इस धन की और, जिस के लिये कि हम रात दिन हाय हाय करते हुए अपने प्राण तक संकट में डालते हैं, इन स्त्रियों की और, जिन के कि वशीभूत ही कर हम अनेकों निर्लज्ज काम कर डालते है, दृष्टि तक नहीं डालता | सचमुच यह कुंवर कदाचित पागल ही होगा। चोरोंने चाहा कि अपन तो अब इन का संवाद सुन चुके हैं यहां से रफ्फु चक्कर होना चाहिये पर देखिये शासन देवने क्या रचना रची। ज्यों ही चोर सुन हैयों की गठरियों सर पर धर कर टरकने लगे कि उन के पैर रुक गये । वे पत्थर मूर्ती की तरह फर्श पर अचल हो गये।