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________________ आचार्यश्री कसूर. ( १०३ ) आचार्य श्री कसूरीजी महाराजने अपने परोपकारी जीवनमें अनेक भव्य श्रात्मायों का उद्धार किया । श्रापने सैकडों जैन मन्दिरों और विद्यालयों की प्रतिष्ठा कराई । श्रापने हजारों नरनारियों को जैन धर्म की दीक्षा दी । आपने विविध प्रान्तों में पर्यटन कर जनता को जैन शास्त्रों के तत्वों का सुधापान कराया ! आप के प्रज्ञावर्ती साधु साध्वियाँ देश विदेश में विहारकर जैन धर्म का प्रचुरता से प्रचार करती थीं । श्रापने अपना अन्तिम समय निकट जान अपने सुयोग्य शिष्य को श्राचार्य पदवी देकर उनका नाम देवगुप्तसूरी रक्खा | आचार्य कक्कसूरी महाराजने सिद्धगिरि पवित्र छोड चले । ओसवाल मोशियाँ में नहीं रह सकते यह कथन भी कपोलकल्पित है । इस किंवदेती का कारण शायद यह हो कि पहाड़ी के उपर पार्श्वनाथस्वामी का एक मन्दिर था जिसके बाहिर की ओर चबूतरे पर सच्चाइका देवी का मन्दिर था । पार्श्वनाथ स्वामी के मन्दिर की सम्भाल सम्यक् प्रकारसे नहीं हुई । क्योंकि महाजन धीरे धीरे नगर छोड के चले गये थे । एकी दशा में सम्भव है । लोगोंने पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ती हटाकर उस जगह देवी की मूर्ती स्थापित कर यह बात फैलादी हो कि ओसवाल ओशियों में नहीं रह सकते हैं । अफवाह फैलानेवालोंने सोचा होगा कि यदि यहां ओसवाल रहेंगे तो शायद मन्दिर के लिये कुछ झगडा अवश्य करेंगे । इस समय जो देवी का मन्दिर ओशियाँ में स्थापित हैं उस को ध्यानपूर्वक ब्लोकन करने से भी यही प्रतीत होता है कि प्राचीन समय में यह मन्दिर पार्श्वनाथ स्वामी का था । पट्टावलीकार भी यही कहते हैं कि महाराजा उपलदेवने पहाडीपर पार्श्वनाथस्वामी का एक मन्दिर निर्माण कराया था। भाज भी निम्नलिखित तीन प्रमाण सिद्ध करते हैं कि यह मन्दिर पार्श्वनाथ स्वामी का ही था ( १ ) प्राचीन पट्टाबलियों ( २ ) पार्श्वनाथ स्वामी की प्राचीन मूर्ती ( ३ ) विक्रम की तेरहवीं शताब्दि मे एक यात्रालु बाईने महावीर रथशाला के लिये बनाए हुए उपाश्रय के खंडहर
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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