SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४ ) जैन जातिमहोदय. था। एक बार ये किसी कार्यवशात् चित्तोड़ गये हुए थे। इनको सञ्चायिका देवी का पूर्ण इष्ट था । जिस दिन लालसिंहजी चित्तोड़ पहुँचे उसी दिनसे पूर्वही चित्तोड़ के महारावलजी की रानी चक्षुपीडासे पीड़ित थीं। कई प्रयत्न महारावलजीने किये पर सब उपाय निष्फल हुए । योग्य चिकित्सक की तलाश करते करते राज्य कर्मचारियों को सिवानासे आए हुए मुहताजी लालसिंहजी से भेंट हुई । और उन्होंने अपना हाल सुनाया इस पर लालसिंह ने कहा यदि आप चाहो तो मैं चतु पीड़ा मिटा सकता हुँ । कर्मचारियोंने कहा हम तो स्वयं इसी हित आए हैं। लालसिंहजीने सञ्चायिका देवी के अनुरोधसे ऐसा उपाय बताया कि रानी की पीड़ा तत्काल जाती रही । सारा राज समाज लालसिंहजी की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगा। महारानीने इस उपलक्षमें लालसिंहजी को बाहरग्राम इनायत किए तथा उनको वैद्यराज की उपाधि सदा के लिये प्रदान की तबसे श्रेष्टिगोत्र की एक शाखा वैद्य मुहत्ता कहलाई। ___ हमारे चरित नायक मुनि ज्ञानसुन्दरजी का जन्म इसी घराने में हुआ जो उपलदेव की संतान श्रेष्टिगोत्र की शाखा वैद्य मुहत्ता कहलाता था । मारवाड़ भूमि के अनर्गत वीसलपुर प्राम में वैद्यमुहत्ता नवलमलजी की भार्या रूपादेवी की कूख से आप. श्रीका जन्म विक्रम सम्वत् १६३७ के आश्विन शुक्ला १० यानि विजया दशमी को हुआ। जब आप गर्भ में थे तो आपकी मातुश्रीको हाथी का स्वप्न आया था तदनुसार ही आपका जन्म नाम " गयवर चंद्र" रखा गया। जबसे आपने अपने घर में जन्म
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy