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लेखक का संक्षिप्त परिचय.
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कारी महापुरुषों की श्रेणी में उच्च स्थान पाने योग्य जैन श्वेताम्बर समाज के उज्जवल रत्न श्रीमद् उपकेश गच्छीय मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज का पवित्र चारित्र इस प्रकार है
वीरात् ७० सम्वत् में आचार्य श्री रत्नप्रभसूरीजीने उपकेश पुर के महाराजा उपलदेव आदि को प्रतिबोध दे उन्हें जैनधर्म का अनुयायी बनाया था । महाराजा उपलदेव जैनधर्म को पालन कर अपने आत्मकल्याण में निरत था । वह अपने जीवन में प्रयत्न कर के जैनधर्म का विशेष अभ्युदय करना सदैव चाहता था
और उन्होंने ऐसाही किया कि वाममार्गियों के अधर्म कीलों को तोड़ जैनधर्म का प्रचुरतासे प्रचार किया इस लिये आप का यश
आज भी विश्व में जीवित है । वह नरश्रेष्ठ अपने गुणों के कारण बहुत प्रसिद्ध हो गया था। उसी के इतने उत्तम कृत्यों के स्मरणमें उस की संतान श्रेष्टि गौत्र कहलाने लगी।
श्रेष्टि गौत्र वालों की प्रचुर अभिवृद्धि हुई । वे सारे भारत में फैलं गये । इन की आबादी दिन प्रति दिन तेज़ रफतार से बढ़ने लगी। मारवाड़ राज्यान्तर्गत गढ सिवाणा में विक्रम की बारहवी शताब्दी. में जैनियाँ की धनी आबादी थी। केवल श्रेष्टि गौत्र वालों के भी लगभग ३५०० घर थे। उस समय गढ़ सिवाना में श्रेष्टि गोत्रीय त्रिभुवनसिंहजी मंत्री पद पर नियुक्त थे। आप बड़े विचारशील एवं राज्य शासन को चलाने में सिद्धहस्त थे ।
इनके सुपुत्र मुहताजी लालसिंहजी का विवाह चित्तोड़ हुआ