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(९४) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. काय और दुर्गम कन्दराओं में आप निस्तब्धता में ध्यान लगाते थे | आप एक आदर्श योगी थे। योगाभ्यास करने में आप तन्मय थे | योग की गहन क्रियाओं को सम्पादन करने के लिये भाप के पास कई जैनेतर व्यक्तिं पाते तथा रहा करते थे । ____ एक बार उपकेशपुर नगर में स्वयंभू महावीर भगवान् के मन्दिर में अट्ठाई महोत्सव हो रहा था। उस महोत्सव में कई वृद्ध और युवक पूजा किया करते थे । मूर्ती का प्रक्षालन करते समय युवकोंने अवलोकन किया कि मूर्ती के स्तनों पर दो गाँठे विद्यमान हैं । ये दो गाँठें नींबू के सदृश थीं । जब सच्चाइका . देवी यह मूर्ति, गौदुग्ध और बेलु से बना रही थी तो मूर्ती सर्वांगसुन्दर बनने के एक सप्ताह प्रथम मंत्रेश्वर से भूमि खोद कर निकाल ली गई थी । वे ही दो गाँठे रह गई थीं । नवयुवकों को रम्य मूर्ती में एक कसर अच्छी नहीं लगी। उन्होंने सोचा यह गाँठे अब मूर्ति पर रहना अश्रेयस्कर है । अंगलूणा करते समय यदि किसी की भावना क्षुद्र हो जायगी तो भारी हानि होने की संभावना है और आशातना का बुरा फल उठाना होगा सो अलग । इसकी अपेक्षा तो यह उचित होगा कि गाँठे तुड़वा दी जावें। नवयुवकोंने वृद्धजनों का ध्यान इस बात की ओर पाकर्षित किया और अनुरोध किया कि इन गाँठों का रहना भद्दा
और हानिकर है। यदि ये गाँठे शीघ्र ही दूर नहीं की जायगी तो सम्भव है कि भविष्य में इस के फल बुरे आवेगें ? । वृद्धोंने नवयुवकों से कहा कि यह गाँठ हानिकर नहीं है । स्वयं सच्चा