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जनजाति महोदय प्रकरण पांचवा.
मन में भी यात्रा करने की इच्छा उत्पन्न हुई । समाज की ओर प्रमुख लोग व्याख्यान-सभा में खड़े होकर विनयपूर्वक आचार्य महाराज से प्रार्थना करने लगे कि भगवन् ! हम लोगों की अभिलाषा है कि हम आपकी अध्यक्षता में इस तीर्थ की एक यात्रा शीघ्र करें | वह दिन कब आवेगा कि हम लोग उस भूमि पर पहुँच कर अपने मनोरथ को पूर्ण करने में समर्थ होंगे ?
आप को भी उस ओर विहार करना था । संघकी यह उत्कंठा देखकर आपने विनती शीघ्र स्वीकार कर ली। उधर नगर में प्रस्थान करने की तैयारियाँ होने लगीं । जमघट भी ठीक हुआ । आपके आज्ञावर्ती ३००० साधु साध्वियाँ तथा कई लाख श्रावक श्राविकाएँ सम्मेतशिखर चलने के अभिप्राय से तैयार हुई | सब के मन में उत्साह था | यात्रा की आवश्यक सामग्री को जुटाने में सब संलग्न थे । हाथी, घोड़े, रथ, प्यादे, बाजे, नक्कारे, पताकाएँ, मन्दिर, रत्नखचित प्रतिमाएँ एवं अर्चन चर्चन की सारी सामग्री व्यवस्थित रूप से यथा स्थान एकत्रित की गई । सर्वसम्मति से संघपति उसी नगर के भूपति सूर्यकरन का दक्ष सचिव प्रयुसेन निर्वाचित हुआ । वासक्षेप के विधि विधान द्वारा प्रथुसेन संघपति बनाया गया । तत्पश्चात् शुभ मुहूर्त में संघ सम्मेत शिखर की यात्रा के लिये खाने हुआ |
संघ चला । मार्ग में क्रम से हस्तिनापुर, सिंहपुर, वाणारसी, पावापुरी, चम्पापुरी, राजगृही और व्यवहार गिरि यादि