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आचार्यश्री ककसूरि और गच्छ. . (५५) चार साधुओं के साथ एक महान अट में जा निकले जहां चारों
ओर पहाड़ों की श्रेणियों आ गई है। दिशाएं अपनी भयङ्करता का इतना तो प्रभाव डाल रही थी कि मनुष्य तो क्या पर पशु पक्षी भी वहां ठहर नहीं सक्ते थे। इधर तरूण सूर्यने अपने प्रचण्ड प्रतापसे विश्व को व्याकुल बना रहा था पर हमारे प्राचार्यश्री उस की पर्वाह नहीं करते हुए बड़ी खुसी के साथ अटवी का उल्लंघन कर रहे थे । उस भयङ्कर अटवी के अन्दर चलते हुए
आपश्री क्या देख रहे हैं कि एक पर्वत के निकटवृर्ति देवी का मन्दिर है एक तरफ अनेक भैंसे बकरे बन्धे हुए हैं तब दूसरी ओर बहुत से जङ्गली आदमी खड़े हैं देवी के सामने एक महान् तेजस्वी तरूणावस्था में पदार्पण किया हुआ एक नवयुवक बैठा है जिसकी भव्याकृती होनेपर भी चहरे पर कुछ ग्लानि छाई हुई दृष्टीगोचर हो रही थी। उस तरूण के पास में ही एक निर्दय दैत्यसा आदमी अपने कर हाथों में कुठार उठाया हुआ खडा है शायद् तरूण की ग्लानी का कारण यह ही हो कि उस कुठार द्वारा उस की बली चढाई जाय ।
___ उस घृणित द्रश्य को देख प्राचार्यश्री को उस तरूणपर वात्सल्यताभाव हो पाया अतएव सूरिजी महाराज एकदम चलकर के वहां गए और उन क्रूर वृतिवालों से कहने लगे कि महानुभावों ! यह आप क्या कर रहे हैं ? उन लोगोंने उत्तर दिया . कि तुम को क्या जरूरत है, तुम अपने रास्ते जाओ। सूरिजीने
कहा कि मैं आप के इस चरित्र को सुनना चाहता हूं कि आपने