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संवाद.
(१७) घुडसवारः-आपके धर्मका मुख्य सिद्धान्त क्या हैं ? मूरिजी:--' अहिंसा परमो धर्मः' घुडसवारः-आप अपने धर्मका उपदेश किसको सुनाते है ?
मूरिजी:--हमारे धर्ममें किसी प्रकारकी वाड़ाबन्धी नहीं है अत: जो कोई भी व्यक्ति धर्म सुनना चाहे उनको हम बड़ी खुशीसे धर्म सुनाते है-और धर्मका रहस्य भी ठीक तौरपर समझाते है ।
घुडसवारः—क्या हम भी आपका धर्म सुन सक्ते है ? मूरिजी:-बडी खुशीके साथ सुन सक्ते हो। घुडसवार:- आप किस स्थानपर बैठके धर्म सुनावेंगे ?
मूरिजीः- अगर आप लोगोंको किसी प्रकारकी बाधा न हो तो हम यहां खडे २ ही धर्मबोध कर सक्ते है। ..
घुडसवार:-फिर तो आपकी बड़ी भारी कृपा है ! अच्छा, हम लोग भापके सन्मुख खडे है कृपा कर हम को कुछ धर्मबोध दे कृतार्थ बनावें ।
आचार्यश्रीको उस घुडसवारके वार्तालापसे उसकी धर्मजिज्ञा
*यद्यपि घुडसवारोंने तो कुतूहल वंशात् यह सब वार्तालाप किया था परन्तु ऐसे कुतूहलों में भी कभी २ धर्मको प्रप्ति हो जाती है और पाखीरको उस धर्म द्वारा नितान्त पापी जैव भी संसार पार हो जाते हैं। यह बात इस द्रष्टान्तसे ठीक सिद्ध हो सक्ती है।