________________
(१६) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. रिजीकी ओर मोडा, और आश्चर्यान्वित हो बोला कि- पाप क्या पूछना चाहते हो ? शीघ्र बोलो । प्राचार्यश्रीने कहा कि महानुभाव! आप लोगोंकी मुखाकृतिसे यह सहज ही स्पष्ट होता है कि आप लोग भच्छे खानदान और कुलिन पुरुष मालुम पडते हो परन्तु यह समझमें नहीं पाता कि आप लोगोंने निरापराध उन मूफ वनचर पशुओं का पीछा क्यों पकड़ा है ? देखिये, आप लोगोंके हाथमें धनुष्य बाणादि शस्त्रों को देख बिचारे ये मुक प्राणि अपने प्राणकी रक्षाके लिये किस कदर भाग रहें है ? क्या इन निर्दोष जीवोंपर आपको वात्सल्यभाव प्रगट न होगा?
सूरिजी महार ज का प्रभावशाली तपतेज, भव्यमुद्रा और बचन माधुर्यताने उन सवागेपर ऐसा असर डाला कि वे मंत्रमुग्धकी तरह उनके सामने देखने लगे. और कुतुहलवश हो निम्नप्रकार सवाल पूछने लगे।
घुडसवार-आप कौन है ! मूरिजी:-हम अहिंसाधर्मोपासक जैन साधु हैं। घुडसवार:- इस तरफ आप कहां पधार रहे हैं ? सरिजी:-हमारा कोई स्थान निश्चित नहीं है अत: इस
दुनियामें परिभ्रमण करते फिरते हैं । घुडसवारः-आपका पेशा-धंधा क्या है ! मूरिजी:-हमारा पेशा-धर्मोपदेश करने का है। घुडसवार:-आपका धर्म कौनसा है ? मूरिजी:-हमारा धर्म विश्वव्यापी-जैन धर्म है।