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श्रीरत्नप्रभाकर शानपुष्पमाला पुष्प नं० १०७
श्रीयचदेवसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः
श्रीजैनजाति-महोदय,
[प्रकरण ५ पांचवां.]
(७) भगवान पार्श्वनाथ प्रभुके सातमें पट्ट पर प्राचार्य श्री यक्षदेवसूरि बड़े ही प्रभावशाली हुए जिनका संक्षिप्त परिचय पाठकवर्ग तीसरे प्रकरणमें पढ चूके हैं कि प्राचार्य श्रीरत्नप्रभसूरिजी के पास श्रीवीरधवल नामक एक उपाध्यायजी थे । उन्होने राजगृह नगर के मिथ्यात्वी यक्षको प्रतिबोध देकर उस नगर के महान संकटको दूर कर शान्ति का साम्राज्य स्थापन किया था। इतना ही नहीं परन्तु राजगृह नगर तथा आसपासके प्रदेशो में परिभ्रमण करके हजारों नहीं बल्कि लाखों भव्य जीवों को प्रतिबोध दे जैनधर्मी बनाये, इस शासन सेवा और परोपकार परायणता पर मुग्ध हो प्राचार्यश्री रत्नप्रभसूरीश्वरजीने अपने करकमलोंसे वासरेपके विधि विधानपूर्वक आपको योग्य सममके प्राचार्यपद पर नियुक्त कर यक्षदेवसूरि नाम रखा था जो अभी तक यक्षप्रतिबोध की स्मृति करा रहा है।