________________
(१०४)
जैन जातियों को उपदेशदाताकीभी न्यूनता नहीं है । जैन जातिमें लिखे पढे नवयुवकों की भी विशालता है
फिर समझमे नहीं पाता है कि जैन जाति अपना इतिहास लिखने मे या उन्नति क्षेत्रमें आगे पैर बड़ानेसे पिच्छी क्यों हट रही है ?
मध्यान्ह के सूर्य का प्रकाश सब जगहा पर पडता हे पाशा है कि हमारे जैन नवयुवकों परभी इतिहासका प्रकाश अवश्य पडेगा
और आगे के प्रकरण लिखनेमे हमे नवयुवकोंकि तरफसे विशेष सहायता मिलेगा ? वस ! ईस आशापरही इस चोथा प्रकरण को समाप्त कर देते है.
इति जैन जाति महोदय चोथा प्रकरण समाप्तम् ।
d====
== = - इति जैन जाति महोदय प्रथम खण्ड समाप्तम् D = = = = =
।