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भोसवाल ज्ञातिके वीरों के प्राचीन बन्द. . (५) डांडिय दुरिजन राइ, पाइ पलडा बहतरि । बाट न को उपटै खान सोदागर सतरि ॥ भणि सीहू डाहासा तन भेरू करि कंचन अवे । वाणीयो वसु विधि निर्मियो, जिहि तुल न तुल्या चक्रवे ॥२॥ . किताइक क्रपण करष कानि नवि किणही आवे । सुख मारग सेविए सूलसां मही भजावे ॥ तु सारंग दूसरा, दूनी संकडे सधारी.', । . भड भोप.त दगिया, अचल अखियात उबारी ।। मति हीण मूगल ब्रष बढियो, छाया तर धर.तौ धरा । भेग्वां तगेवर तु पखे, पछितावे पंखी खरा. ॥३॥ तुम बिण असूर अनंत संक नवि कोइ माने । तुम विण पान कुपात भला को भेव न जाणे ।। तुझ विण बंदी बंदिजात, काबिल न बहोडे ।
तुज विण चाडी करे, चाडके नाक न फोडे । • भणि सीहू तुझ बिणि दांन गौ, कछु न बात दीसे भली ।
भैग्वा प्राव इक वार तु, इती अनीति अलवर चली ॥ प्रथम ग्मी चहूवान, बंस जिस हूवो हमीग । दुजे खीलची माहि, जास माफुर बजीग ।। ती पीछे पेरोज, चढ बिमलुखां दल कुटयो । बहू गंण भुगइ, साहि महमुद अहुदयो ।।
१ दुनियाके संकटमें प्रबल आधार देनेवाला.