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श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा.
तथापि अनुमान हो सक्ता है कि स्नात्रीये बननेके समय गोत्रोंका जथ्था बन्ध गया था तो कमसेकम दो तीन शताब्दी जीतना पुराण समय तो अवश्य होना ही चाहिये इस अनुमानसे पट्टावलियों व वंसावलियों का समय भी स्थिर हो सक्ता है श्रागे हम इन १८ गोत्रों कि वृद्धि कि ओर देखते है तो प्रत्येक मूलगोत्रसे अनेक साखा प्रति साखासे प्रफुल्लित हो इस ज्ञातिने अपनी इतनी तो उन्नति करली कि इसके मुकाबला में स्यात् ही दूसरी ज्ञातियों उन्नति क्षेत्रमें आगे पांव रखा हो इन अठारा गोत्रोंका विस्तार पूर्वक इतिहास जो हमको मिला है वह आगे प्रकरणों मे दीया जावेगा यहाँ परतो केवल एकेक गोत्रों से कितन कितन साखाओरूप ज्ञातियों व गोत्र निकले है उनके नाम मात्र दे देना चाहते है कारण कि यह भी इस ज्ञातिके उन्नतिका एक नमूना है
(१) मूलगौत्र तातेड़ - तातेड, तोडियाणि, चौमोला, कौसीया, धावडा, चैनावत, तलावडा, नरवरा, संघवी, डुंगरीया, चोधरी, रावत, मालावत, सुरती, जोखेला, पांचावत, बिनायका, साढेरावा, नागडा, पाका, हरसोत, केलाणीं, एवं २२ जातियों तातेड़ोंसे निकली यह सब भाई है ।
( ४ ) मूलगौत्र बाफणा - बाफणा, ( बहुफूणा ) नहटा, ( नाहाटा नावटा ) भोपाला, भूतिया, भाभू, नावसरा, मुंगडिया, डागरेचा, चमकीया, चोधरी, जांघडा, कोटेचा, बाला, धातुरिया, तिहुणा, कुरा, बेताला, सलगया, बुचाणि, सावलिया, तोसटीया, गान्धी, कोटारी, खोखरा, पटवा, दफतरी, गोडावत, कूचेरीया,