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प्रस्तावना.
(१९)
उपर्युक्त कारणों से समस्त पुस्तक को एक ही बार में प्रकाशित कराने की सामग्री तैयार होने पर भी प्रकाशित करवा देना मेरी सामर्थ्य से बाहिर की बात थी अतएव प्रस्तुत पुस्तक के ४ खंड करदिये गये जिस से लिखने, प्रकाशित होने तथा
आर्थिक व्यवस्था आदि में सहूलीयत रह इसी कारण से पाठकों के सम्मुख अाज यह प्रथम खण्ड उपस्थित किया जाता है ।
इस ग्रंथ में जैन जातियाँ की उत्पत्ति से लेकर मध्याह्न काल के तेजस्वी सूर्य की भाँति जो जैन जातियाँ का महोदय हुआ था तथा तब मे आज तक का विस्तृत इतिहास रहेगा। इसी कारण से ग्रंथ का शीर्षक 'जैन जाति महोदय' नाम रखना मैंने उचित समझा । जो बात उठाई गई है वह विस्तृत बताई गई है । पर इस उद्देश में भी कई सज्जनों की आग्रह से कुछ परिवर्तन करना पड़ा है यह कारण विस्तृत रूप में प्रथम द्वितीय प्रकरण में आप पढ़ सकेंगे। प्रथम खण्ड के.छे प्रकरणों में इस प्रकार वर्णन है
प्रथम खण्ड के प्रथम प्रकरण में विविध प्रमाणों द्वारा सब से प्रथम यह सिद्ध किया गया है कि जैन धर्म अति प्राचीन है । इस बात को सिद्ध करने के लिये ऐतिहासिक प्रमाणों का संग्रह किया गया है तथा इस के अतिरिक्त वेद पुराण आदि से भी यह सिद्ध किया गया है कि वेद पुराण में जैनियों के राजा, तीर्थकर आदि का वर्णन है । तद् विषयक जो जैनेतर इतिहासज्ञों की सम्मत्तियाँ का भी संग्रह किया गया है । जैनेतर