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दूसरी शंका का समाधान.
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अगरवाले डीपे पाटीदार आदि अनेक शातियां जैन धर्म्म पालती है. पर उन का न्याति जाति का व्यवहार अपनि अपनि ज्ञाति के साथ में है इस रीती से अगर उकेशपुर ( ओशियों) में कोइ शूद्र जैन धर्म पालनेवालों कि कल्पना कर लि जावे तों भी शूद्र जाति का भोजन व बेटी व्यवहार क्षत्रिय ब्राह्मण के साथ होना अर्थात् ओसवालों के साथ होना सिद्ध नहीं होता है । जैसे शैव- विष्णु 1 धर्म्म पालनेवाले क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्य है वैसे ही शूद्र भी है तो क्या कोई यह कल्पना कर सकेगा कि शैव- विष्णु धर्म पालनेवाले शूद्रों का भोजन व बेटी व्यवहार क्षत्रिय ब्राह्मणों के साथ है ? इसी माफीक जैन धर्म पालनेवालों को भी समझ लेना चाहिये ।
शूद्रादि जातियों जैन धर्म्म नहीं पालने का कारण यह है कि जैन धर्म के नियम ( कायदा ) आचार खान पान इतने उंचे दर्जे के है कि जिसमें मांस मदिरा अभक्ष अनंतकाय तो सर्वथा ताज्य है सुवां सुतक और ऋजोशलादि का वडा परेज रखा जाता है इत्यादि से सख्त नियम शूद्रादि से पालना मुश्किल होने से ही वह जैन धर्म पालन करने में असमर्थ है अगर कोइ शूद्र पूर्व क्षयोपशम से जैन धर्म के नियमानुसार जैन धर्म पालन करता भी हो तो क्या हरजा हैं कारण जैन सिद्धान्तकारों ने आत्मा निमित वासी मानी है और जैनेत्तर लोगो ने भी अपने धर्मशास्त्रों में लिखा है यथा