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(३८) जैन जाति महोदय प्र० चोथा. .
(ख ) चामडिया ग्राम से अन्य प्राम में वास करने से चामड नाम पडा हैं । देखों उनकि वंसावलियों.
(ग) बलाई-रत्नपुरा ठाकुरों के और बोहारजी के तनाजा होने पर बोहारजीने माल बचाने कि गरजसे अपना माल स्टेट गाडियोंमे डाल रात्रि में गाडियों पर 'खालडे' डाल रवाने हुवे पीछे से ठाकुरों के आदमि आने पर बोहारजीने कह दिया कि हम तो बलाइ है तब से इन के बोहार गोत्र वालोंकों बलाइ नाम से पुकारने लगे इत्यादिक कारणों से वह कीसी के साथ लेन देन वैपार करने पर भी हांसी ठठा में नाम पड जाते है इसी माफिक अन्य जातियों के लिये समझना चाहिये । विशेष खुलासा "जैन जाति महोदय" नामक किताब में इन जातियों कि उत्पत्ति और वंसावलि से देखना चाहिये।
जैन सिद्धान्त इतना तो उदार और विशाल है कि जैन धर्म पालने का अधिकार विश्वमात्र को दे रखा है इस वास्ते ही जैन धर्म विश्वव्यापि धर्म कहलाता है अगर कोइ शूद्र वर्णवाला जैन धर्म पालना चाहे तो वह खुशी से पाल सक्ता है धर्म का संबंध आत्मा के साथ है और न्याति जाति के बन्धन वर्गों की संकलना वह लौकिक आचरणा है आत्मिक धर्म और लौकिक आचरणा के एसा कोइ नियम नहीं है कि अमुक वर्ण व ज्ञाति का हो वह ही अमुक धर्म पाल सके या अमुक धर्म पालनेवाला अमुक ज्ञाति के साथ संबन्ध रखनेवाला होना ही चाहिये । आज भी ओसवालों के अतिरिक्त और भी राजपुत ब्राह्मण महेश्वरी