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जैन जाति महोदय प्र० चोथा.
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दिज्ञातियों के नाम वैपारसे पडा है ।
(५) कोटेचा डांगरेचा ब्रह्मेचा वागरेचा कांकरेचा सालेचा प्रामेचा पावेचा पालरेचा संखलेचा नांदेचा मादरेचा गुगलेचा गुदेचा केडेचा सुंघेचा इत्यादि ज्ञातियों के उपनाम दक्षिणकी तरफ ये हुवे सवालों के है ।
इसी माफीक मालावत् चम्पावत् पातावत् सिंहावत् श्रादि पिताके नामपर और सेखाणि लालागि धमाणि तेजाणि दुद्धाणि सीपाणि वैगाणि आसांणि जनाणि निमाणि इत्यादि थलिप्रान्त व गोडवाड प्रान्त में पिताके नामपर ज्ञातियों के नाम पड गये है ।
इत्यादि अनेक कारणोंसे ओसवालोंकी शाखा प्रति शाखा रूप सेंकडो नहीं पर हजारों जातियों बन गई जो ओसवालों में १४४४ गोत्र कहे जाते है पर अन्तिम " डोसी और गणाइ होसी " इस पुराण कहावत के बाद भी एकेक गौत्र से अनेक जातियों प्रसिद्धि में आई थी | यहांपर यह कहना भी अतिशययुक्ति न होगा कि ओसवाल ज्ञाति उस जमाने में साखा प्रति साखाफलफूलसे वट वृक्षकी माफीक फाली - फूली थी जबसे आपस कि द्वेषाग्निरूपी फूटके चिनगारियें उडने लगी तबसे इस ज्ञातिका अध: पतन होने लगा जिसकी साखा प्रति साखा तो क्या पर मूल भी अर्धदग्ध बन गया है अगर अबी भी प्रेम ऐक्यता रूपी जलका सिंचन हो तो उम्मेद है कि पुनः इस पवित्र ज्ञाति को हमे फली फूली देखनेका समय मिले ।