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(२८) जैन जाति महोदय प्र. चोथा. समय के पहिले उपकेश झाति अच्छी उमति पर दूर दूर के क्षेत्र में विशाल रूपसे पसरी हुई मानने में कीसी प्रकार की शंका नहीं है.
(१७)' इस समय पूरातत्त्व कि शोधखोज से एक पार्श्वनाथ भगवान् कि मूर्ति मिली वह कलकत्ते के अजायब घरमें सुरक्षित है उसपर वीरात् ८४ वर्षका शिलालेख है जिस्में लिखा है कि श्री वत्स ज्ञाति के........ ने वह मूर्ति बनवाइ है उसी श्री वत्स ज्ञातिका शिलालेख विक्रम की सोलहवी सदी तक के मिलते है अगर श्री वत्स ज्ञाति उपकेश बंस कि साखा रूपमें हो तो उपकेश ज्ञाति की उत्पत्ति वीरात् ५० वर्षे मानने में कोई भी विद्वान शंका नहीं कर सकेगा। कारण कि जो लेख श्री वत्स ज्ञातिका विक्रम की सोलहवी सदीका मिलता है उसके साथ उपकेश वंस भी लिखा मिलता है वास्ते वह ज्ञाति उ. पकेश ज्ञाति की साखामें होना निश्चय होता है. इस उपरोक्त प्रमाणोंका इसारा लेके हम पट्टावलियों और वंसावलियों को भी किसी अंशसे सत्य मान सकते है यद्यपि वंसावलियों पट्टावलियों इतनी प्राचीन नहीं है तद्यपि उसको बिलकुल निराधार नहीं मान सकते है उसमें भी केइ बातें एसी उपयोगी है कि हमारे इतिहास लिखने में बढी सहायक मानी जाती है।
उपकेश झाति के विषयमें विक्रम की इग्यारखी सादी से वीरात् ८४ वर्ष तक के थोडे बहूत संख्यामें प्रमाण मिलते है