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( ९६ )
४३ श्री कक्क सूरिः
४४
देवगुप्त
४५
सिद्ध
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४६ "
४७
22
19
५३
५४
५५
४८,,
४९ कक्क
५०
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५१ "
५२
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५६ १
५७
कक्क
देवगुप्त
सिद्ध
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देवगुप्त
सिद्ध
कक्क
देवगुप्त
सिद्ध
कक्क
देवगुप्त
सिद्ध
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जैन जाति महोदय प्र० तीसरा.
५८ श्री कक्क सूरिः
५६
देवगुप्त
सिद्ध
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५०
६१ कक्क 99
६२,, देवगुप्त
६३
सिद्ध
६४
६५
६६
६७
कक
६८, देवगुप्त
६९
सिद्ध
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कक्क
देवगुप्त
सिद्ध
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७२ श्री सिद्ध सूरिः
७३
कक
७४
देवगुप्त
७५
सिद्ध
७६
७७
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1 ७८
७९.
८०
८१
८२
८३
८४
| ८५
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99
७०
कक्क
००
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99
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देवगुप्त ७१ पूर्वोक्त पट्टावलि वर्तमान् वीकानेर सांखाकी है इनके सिवा द्वि वन्दनीक सांखा व खजवाना साखादि कि पट्टावलियों में भी उपरोक्त नामावलि आया करती है भिन्न भिन्न साखाओं के आचा
का एक ही नाम होनेसे इनका समय व इस नाम के आचार्यो की कराइ हुई प्रतिष्ठा व ग्रन्थ निर्माण के समयका मिलान करनेमें कितनेक लोग चक्रमे पड जाते है जो की जिनको इन भिन्न भिन्न पटा वलियोंका ज्ञान नहीं है इसलिये निवेदन है कि समय मिलान पहले इन पट्टावलियों का ज्ञान करना जरूरी वात है । शम् इति जैन जाति महोदय तीसरा प्रकरण समाप्त.
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कक
देवगुप्त
सिद्ध
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कक्क
देवगुप्त
सिद्ध
कक्क
देवगुप्त
सिद्ध
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ܙܙ
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ܕܙ
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71
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