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________________ कोरंटपुर में महावीर बिंब की प्रतिष्ठा. ( ८७ ) उस पर सूरिजीने कहा कि इस मुहूर्त में यहां भी प्रतिष्टा हैं वास्ते तुम वहांर रहे हुवे कनकप्रभादि मुनियों से प्रतिष्ठा करवा लेना. इस पर कोरंट संघ दिलगीर हो कहा कि भगवान् हम आपके गुरुमहाराज स्वयंप्रभसूर के प्रतिबोधित श्रावक है और उपकेशपुर के श्रावक आपके प्रतिबोधित है वास्ते इन पर श्रापका क्या राग है इत्यादि संघने सविनय दलगीरी के साथ कहा की खेर । भगवान् । श्रापकी मरजी इसपर आचार्यश्रीने पनि उदार भावना प्रदर्शित करते हुवे कहा " गुरुणा कथितं मुहूर्त बेलायां गच्छामि " श्रावको तुम अपना कार्य करों में मुहूर्तपरा जागा, श्रावक जयध्वनि के साथ वन्दना कर विसर्जन हुवे इधर उपशपुर में प्रतिष्ठा महोत्सव बडे ही धामधूम से हो रहा है पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्यादि से धर्म की बडा भारी उन्नति हो रही है। आचार्यश्रीने "निजरूपेण उपकेश प्रतिष्ठा कृता वेक्रयरूपेण कोरंट के प्रतिष्ठाकृता श्राद्धैः द्रव्यव्यय कृतः " यहतो आप पहला से ही पढ़ चुके है कि प्राचार्य रत्नप्रभसूरि का जन्म विद्याधर वंसमे हुवा और आप अनेक विद्याओं के पारगामी थे श्राप निज रूपसे तो उपकेश पुर मे और वैक्रय रूप से कोरंटपुर में प्रतिष्ठा एक ही मुहूर्त में करवादी न दोनो प्रतिष्ठा महोत्सव में श्रावकोने बहुत द्रव्य खरच कर अनंत पुन्योपार्जन किया था तत्पश्चात् कोरंट संघ को यह खबर हुई कि प्राचार्य रत्नप्रभसूरि निज रुपसे उपकेशपूर प्रतिष्ठा कराइ और यहाँ तो वैरूप से आये थे इसपर संघ नाराज हो कनकप्रभ मुनि कों उस की इच्छा के न होने पर भी प्राचार्य पद से भूषीत कर श्राचार्य बना दीया इसका फल यह हुवा, कि उधर कोरंटपुर, श्रीमाल ओर पद्मावती
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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