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देवि का पूजन.
( ८३ ) करते भी होंगे तों मैं उसकों उपदेश करूंगा । हे भद्रों ! यह देवि देवता का भक्ष नहीं है पर कितने ही पाखण्डि लोगोने मांस भक्षण के हेतु देवि देवताओंके नामसे ऐसी अत्याचार प्रवृत्ति को चला दी है जिस पदार्थोंसे अच्छे मनुष्यों को भी घृणा होती है तो वह देव देवि कैसे स्वीकार करेंगे अगर तुम को धैर्य नहीं हो तो अपवाद के कारण लडू चुरमा लापसी खाजा नालियेर गुलराबादि शुद्ध सुगंधित पदार्थोंसे देवि की पूजा कर सकते हो इत्यादि धैर्य को प्राप्त हुवे श्राद्धवर्ग को सुरिजीने उपदेश किया उसको श्रवण कर संघने अपने अपने घरों में वह ही शुद्ध पदार्थ तैयार करवा के सूरिजीसे अर्ज करी कि आप हमारे साथ देवि के मन्दिर पधारें कारण हम को देविका वडा भारी भय हैं इस पर सूरिजी भी अपने शिष्य मण्डल से संघ के साथ देवि के मन्दिर में गये. गृहस्थ लोगोंने वह पूजापा नैवेद्य वगैरह देवि के आगे रखा जिन को देख देवि एकदम कोपायमान हो गइ | इधर दृष्टिपात किया तो सूरिजी दीख पडे । वस देवि का गुस्सा 1 मन का मन में ही रह गया, तथापि देवि, सूरिजी से कहने लगी वहां महाराज आपने ठीक किया मैने ही आप को विनंती कर यहां पर रख के उपकार कराया और मेरे ही पेट पर अपने पग दीया, क्या कलिकाल कि छाया श्राप जैसे महात्माओ पर भी पड जाति है मैंने पहले ही आपसे अर्ज करी थी कि श्राप राजा प्रजा को जैनी तो बनाते हो पर मेरे कड्डके मरडके न छोडाना ? पर आपने तो ठीक ही क्या इत्यादि देवि का वचना सुन सूरिजी महाराजने कहा देवि यह नाळीअर तो तेरा कड्डका है और