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महावीर मूर्ति का दर्शनोत्साहा. (८१) गया तो हमेशोंकी माफिक दुद्ध मरता देख, मंत्री के पास आया और सब हाल कहा. दूसरे दिन खुद उहडमंत्री वहां गया, वह ही सब हाल देखा और विचार किया कि यहांपर कोइ भी चमत्कार होना चा हिये गायकोदूर कर जमीन खोदी तो वह क्या देखता है कि शान्तमुद्रा पद्मासनयुक्त श्री वीतराग की मूर्ति दीखपडी, मंत्रीश्वरने दर्शन फरसन कर बडा आनंद मनाया, और सोचने लगा कि मेरेसे तो मेरी गाय ही बडी भाग्यशालिनी है जो कि अपना दुद्धसे भगवान का प्रक्षाल करारही है खेर । मंत्रीश्वर नगरमें आकर राजा और अन्योन्य विद्वानोंसे सब हाल कहा । बस फिर देरी भी क्या थी । बडे समारोह यानि गाजा बाजाके साथ संघ एकत्र हो सूरिजी महाराजके पास आये और अर्ज करी कि भगवान आपकी कृपासे हम हमारा अहोभाग्य समझते है कि हमने आज भगवान् के बिंबका दर्शन कीया और अब आप भी श्री संघके साथ पधार कर भगवान् को नगर प्रवेश करावे यह सब संघ भगवान के दर्शनोंका पिपासु हो रहा है इत्यादि । सूरिजीने सोचा कि बिंब तैयार होनेमें अभी सात दिनकी देरी है परन्तु दर्शनके लिए आतुर हुवा संघका उत्साहको रोकना भी तो उचित नहीं है, 'भवितव्यता' पर विचार कर सूरिजी अपने शिष्य समुदायके साथ संघमे सामिल हो जहां भगवानकी मूर्ति थी वहां गये श्री संघने जमीनसे बिंब निकलकर नमस्कार पूर्वक हस्तीपरारूट कर के धामधूम पूर्वक भगवानका नगर प्रवेश करवाया। संघमे बडा ही आनंद मंगल और घरघर उत्सव और हीरा पन्ना माणेक