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________________ (५४) जैन जाति महोदय प्र० तीसरा. म्बर के साथ अपनी कन्या शोभाग्यदेवीको मंत्रीश्वरके पुत्र त्रीलोकसिंह को परणादी. तत्पश्चात् थोडाही समयकी जिक्र है की वह दम्पति एकदा अपनि सुखशैय्यामें सुते हुवे थे "मंत्रीश्वर ऊहह सुतं भुजंगेनदृष्टाः " मंत्रीश्वरके पुत्र त्रीलोकासिंह को अकस्मात् सर्प काट खाया" अज्ञ लोक कहते है की सूरिजीने रुइ का मायावी साप बना के राजा का पुत्र को कटाया था यह बिलकुल मिथ्या है " मूल पट्टावलिमे लिखा है कि नूतन परणा हुवा राजा के जमाई (मंत्रीश्वर का पुत्र ) को सांप काट खाने से नगर में हा-हाकार मच गया बहुत से मंत्र यंत्र तंत्र बादी आये अपना अपना उपचार सबने किया जिस्का फल कुछ भी न हुवा आखिर कुमारको अग्नि । संस्कार करने के लिये स्मशान ले जाने की तैयारी हुइ " तस्य स्त्री काष्ट भक्षण स्मशाने आयाता" राजपुत्री सौभाग्यदेवी अपना पति के पीच्छे सती होने को अश्वारूढ हो वह भी साथ मे होगइ । राजा, मंत्री, और नागरिक महान् दुःखि हुवे वह रूदन करते हुवे स्मशान भूमि की तरफ जा रहे थे " कारण उस समय एसी मृत्यु कचित् ही होती थी" इधर चमुंडा देविने सोचा कि मेने सूरिजी को विनंति की थी उस समय वचन दिया था की आपके चतुर्मासमें यहांपर बहुत लाभ होगा पर उसके लिये आज तक मेने कुच्छ भी प्रयत्न नहीं किया किन्तु आज यह अवसर नाम का है एसा विचार एक लघु मुनि का रूप बना कर स्मशान की तरफ कुमर का मापान (सेविका ) जा रहा था उस के सामने जाके देवीने कहा कि " जीवितं कथं
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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