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सोभाग्यदेवी का पाणिग्रहग. . (५३) विकट तपस्या के करने वाले हो वह हमारे पास रहे शेष यहां से विहार कर अन्य क्षेत्रोंमे चतुर्मास करे, इस पर ४६५ मुनि तो गुरु आज्ञासे विहार किया " गुरुःपंचत्रिंशत् मुनिभिःसहस्थितः" आचार्यश्री ३५ मुनियों के साथ वहां चतुर्मास स्थित रहे । रहे हुवे मुनियोंने विकट यानि उत्कृष्ट चार चार मासकी तपस्या करली।
और पहाडी की बनराजी मे आसन लगा के समाधि ध्यान में रमणता करने लग गये। मुनियों के लिये तो “झानामृत भोजनम्" ____ इधर स्वर्ग सदृश उएसपट्टन में राजा उत्पलदेव राम राज कर रहा था अन्य राणियों में जालणदेवी ( सग्रामसिंहकी पुत्री) पट्टराणिथी उसके एक पुत्री जिस्का नाम शोभाग्यदेवी था वह वर योग्य होनेसे राजा को चिंत्ता हुइ राजा वर की तलास मे था, एक समय राजाने कुमरि का सगपण विषय राणिके पास वात करी तब राणिने कहा महाराज ! मेरी पुत्री मुझे प्राणसे वल्लभ हे एसा न हो की आप इसकों दूर देशमें दे मेरे प्राणों को खो बेठो, भाप एसा वर की खोज करे की मेरी पुत्री रात्रिमे सासरे और दिनमें मेरे पास रहे इत्यादि. राजा यह सुन और भी विचारमे पड गया। ___इधर उहडदे मंत्रि के त्रीलोकसिंह नाम का पुत्र जो वडाही शूरवीर तथा लिखा पढा विद्वान और शरीरकी सुन्दरता कामदेव तूल्य थी जिसकों देख राजाने सोचाकी शोभाग्यदेवी की सादी इसके साथ कर देनेमे अव्वल तो घर व वर पुत्री के योग्य है दूसरा जो में मंत्रि का ऋणि हुँ वह भी अदा हो जायगा तीसरा राणिका कहना भी रह जायगा एसा समझके शुभ मुहुर्तके अन्दर बडे ही आर.