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प्राग्वट वंश कि स्थापना. राजादि ४५००० घर पवित्र जैन धर्म को स्वीकार कर हजारों लाखों पशुओ को अभयदान दीया. राजा के पूर्वावस्था मे गुरु प्राग्वट ब्राह्मण थे उन्होंने कहा की हे प्रभो ? हमारे यजमानों के साथ हमारा भी कुच्छ नाम रखना चाहिए कि हम आप के उपदेश से जैनधर्म्म को स्वीकार कीया है इस पर सूरिजीने उन सब संघ की प्राग्वट जाति स्थापन करी आगे चलकर उसी जाति का नाम "पोरवाड' हुवा है इसी माफिक श्रीमालनगर और पद्मावतीनगरी के आसपास फिर हजारों लाखो मनुष्यो कों प्रतिबोध दे जैन बना के उन पूर्व जातियों में मीलाते गये वास्ते यह जातियों बहुत विस्तृत संख्या में हो गई । आपश्री के उपदेश से श्रीमालनगर में श्री ऋषभदेव भगवान् का विशाल मन्दिर और पद्मावतीनगरी में श्रीशान्तिनाथ भगवान् का मन्दिर तथा उस प्रान्त में और भी बहुत से जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा आप के कर कमलो से हुई. श्रीमालनगर से यों कहो तो उस प्रान्त से एक सिद्धाचलजी का बड़ा भारी संघ निकाला था आबू के मन्दिरो का जीर्णोद्धार भी इसी संघ ने करवाया इत्यादि आपश्री के उपदेश से धर्म कार्य हुवे ।
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आचार्य स्वयंप्रभसूर के पास अनेक देव देवियां व्याख्यान श्रवण करने को आया करते थे एक समय कि जिक्र है कि श्री चक्रेश्वरी अंबिका पद्मावति और सिद्धायिका देवियां सूरिजी का व्याख्यान सुन रही थी उस समय आकाश मार्गसे रत्नचुड विद्याधर सकुटुम्ब नंदीश्वर द्विपकी यात्रा कर सिद्धाचलजी की यात्रा करने को जा रहेथे उस का विमान आचार्य स्वयंप्रभसूरि के