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________________ धर्मलाभ-आशीर्वाद. (१९) वृद्धिका आशीर्वाद देते है पर वह शूद्र व वैश्याके वहाँ भी होजाति है। हे राजेन्द्र ! इसमे कोइ महत्वका आशीर्वाद नहीं है पर जैन मुनियोंका जो " धर्मलाभ " रूपी आशीर्वाद अर्थात् आपको धर्मका लाभ सदैव मिलता रहे, धर्मलाभका प्रभावसे ही इस लोकमें कल्याण के साधन सामग्री (सुख सम्पति) और परलोकमें स्वर्ग व मोक्षकी प्राप्ति होती है इस लिये जैन मुनियोंका धर्मलाभ जगतवासी जीवोंके कल्याण का हेतु है । सूरिजी महाराज कि युक्ति और विद्वतामय शब्द सुनके राजा को अतिशय आनंद हुवा राजाने सूरीश्वरजी कि स्तुति व आदर सत्कार कर आसनपर विराजनेकी अर्ज करी तत्पश्चात् सूरिजी भूमि प्रमार्जन कर कांबलीका आसन बिछाके अपने शिष्यों के साथ विराजमान हो गये । यद्यपि गजा शैवोपासक था पर उनके हृदयमें मध्यस्थ वृत्ति थी और नीतिज्ञ होनेसे महापुरुषोंपर गुणानुराग होना स्वभावीक बात है सूरिजी महागजसे राजाने अर्म करीकि हे भगवान् । धर्मका क्या लक्षण है ? किस धर्म से जीव जन्म मरण से मुक्त हो अक्षय पद प्राप्त करता हैं ? इसपर सूरिश्वरजी महाराजने अपने विशाल ज्ञान से धर्मकी व्याख्या करी जिसका सारांश रूप कुच्छ उल्लेख यहां बतलाते है। अहिंसा लक्षणो धर्मो ह्यधर्मः प्राणिनां वधः । तस्माद् धर्मार्थिभिलॊकैः कर्त्तव्या प्राणिनां दया ॥१॥ अर्थात् धर्मका लक्षण अहिंसा है और प्राणिका बध यह अधर्म है वास्ते धार्थियोंका कर्तव्य है कि वह सदैव प्राणियों का रक्षण करे फिर भी सुनिये ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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