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________________ (२) जैन जाति महोदय प्र० तीसरा. तेवीसवां तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ का पवित्र जीवन के विषयमें “पार्श्वनाथ चरित्र" नाम का एक स्वतंत्र प्रन्थ प्रसिद्ध हो चुका है पार्श्वनाथ भगवान के दश भवां सहित वर्णन कल्पसूत्र में छप चुका है पार्श्वनाथ प्रभु की संक्षिप्त जीवनी इसी किताब का दूसरा प्रकरण में हम लिख आये है भगवान् पार्श्वनाथ मोक्ष पधारने के बाद आपके शासन की शेष हिस्ट्री रह जाती है वह ही इस तीसरा प्रकरण में लिखी जाति है। (१) भगवान पार्श्वनाथ के पहले पाट पर आचार्य शुभदत्त हुए-भगवान् पार्श्वनाथ के मोक्ष पधार जानेपर चार प्रकारके देवता और चौसठ इन्द्रोंने भगवान का शोकयुक्त निर्वाण महोत्सव कीया तत्पश्चात् जैसे सूर्य के अस्त हो जाने से लोक में अन्धकार फैल जाता है इसी प्रकार धर्मनायक तीर्थकर भगवान् के मोक्ष पधार जाने पर लोकमें अज्ञान अन्धकार छा गया । सकल संघ निरूत्साही हो गये. तदनन्तर चतुर्विध संघने पार्श्वनाथ भगवान के पाट पर श्री शुभदत्त नामक गणधर “जो आठ गणधरों में सबसे बडे थे, " को निर्वाचित किया, सूर्य के अस्त हो जाने पर भी चन्द्रका प्रकाश लोगों को हितकारी हुवा करता है उसी भांति भगवान के मोक्ष पधार जाने पर आचार्य शुभदत्तसूरि चन्द्रवत् लोक में प्रकाश करने लगे, आचार्य श्री द्वादशांगी के पारगामि श्रुत केवली जिन नहीं पर जिन तूल्य सद्उपदेशद्वारा जैनधर्मकी उन्नति करते हुवे और तप संयमादि आत्मबलसे कर्म शत्रुओं को पराजय कर आपने कैवल्य ज्ञानदर्शन प्राप्त किया. फिर भूमण्डल पर वि.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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