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________________ जैन ब्राह्मणोकी उत्पती ( १९ ) में छोटे भाईयों को वन्दना कैसे करू अर्थात् उन लघु बन्धुत्रोको नमस्कार करना नही चाहता हुवा जंगलमे जाके ध्यान लगा दीया जिसको एक वर्ष हो गया. उनके शरीर पर लताओ वेल्लियो और घास इतना तो छा गया कि पशुपक्षीयोंने वहां अपना घर बना लीया. इधर भगवान् | बाहुबलऋषिको समजाने के लिये ब्राह्मी तथा सुन्दरी साध्वीयोंको भेजी वह आके भाईको कहने लगी " वीरा म्हारा गजथकी उतरो, गज चढियो केवल नहीं होसीरे " यह सुन के बाहुबलीने सोचा कि क्या साध्वीयां भी असत्य बोलती है ! कारण कि मैं तो गज तुरंग सब छोड के योग लिया है पर जब ज्ञान दृष्टि से विचारने लगा तब साध्वीयोंका कहना सत्य प्रतीत हुआ सच्च ही मैं मानरूपी गजपर चढा हुं एसा विचार ६८ भाईयोंको वन्दन करने कि उज्ज्वल भावना से ज्यों कदम उठा या कि उसी समय बाहुबलीजीको कैवल्यज्ञानत्पन्न हो गया वहांसे चलके 'भगवान् के पास जाके भगवान्‌को प्रदक्षिना कर केवली परिषदामे सामिल हो गये । इधर भरत सम्राट्ने सुना कि मेरे राजलोभ के कारण ६८ भाईयोने भी भगवान् के पास दीक्षा लेली है अहो मेरी कैसी लोभदशा कि भगवान् के दीये हुवे राज भी मैंने ले लीया भगवान् क्या जानेगा इत्यादि पश्चात्ताप करता हुवा विचार किया कि में ८ भाईयोंके लिये भोजन करवा के वहाँ जा मेरे भाईयोंको भोजन जीमा के क्षमा कि याचना करू वैसे ही ५०० गाडा भो - जनसे भरके भगवान् के समवसरण में आया भगवान्‌को वन्दन कर
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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