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नमिविनमि.
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उसे असंयति समज कीसी साधुने उसकी वैयावृत्य नहीं करीब मरिचीने सोचा कि एक शिष्य तो अपनेको भी बनाना चाहिये कि वह एसी हालत में टहल चाकरी कर सके ? बाद एक कपिल नामका राजपुत्र मरिचीके पास दीक्षा लेनेको आया, मरिचीने उसे भगवानके पास जानेको कहा पर वह बहुलकर्मि बोला की तुमारे मतमे भी धर्म है या नहीं ? इस पर मरिचीने सोचा कि यह शिष्य मेरे लायक है तब कहा कि मेरे मतमे भी धर्म है और भगवान के मतमे भी धर्म है इसपर कपिलने - मरिचके पास योग ले सन्यासीका वेष धारण कर लीया मरिचीने इस उत्सूत्र भाषण करनेसे एक कोडाकोड सागरोपम संसारकी वृद्धि करी । मरिचीका देहान्त होनेके बाद कपिल मरिचीकी बतलाई हुइ ज्ञान शून्य क्रिया करने लगा इस कपिलके एक आसूरि नामका शिष्य हुवा उसने भी ज्ञानशून्य मार्गका पोषण कीया क्रमशः इस मतमें एक सांख्य नामका आचार्य हुवा था उसीके नामपर सांख्य मत प्रसिद्ध हुआ ।
• भगवानने दीक्षा समय पर सब पुत्रोंको अलग २ राज दीया था उस समय नमि विनमि वहां हाजर नहीं थे बाद में वह आये और खबर हुई कि भगवानने सबको राज दे दीया अपुन भाग्यहिन रह गये एसा विचार कर वह भगवान् के पास आये कीतने ही दिन प्रभुके पास रहे परन्तु भगवानने तो मौन ही साधन किया उस समय धरणेन्द्र भगवानको वन्दन करनेको आया था उसने नमि विनमिको समजाके ४८००० विद्याओंके साथ वैताढ्यगिरिका राज्य दीया फीर नमिने
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