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जैन जाति महोदय. भवमें पौद्गलिक सुख देनेवाला है पर भगवान् सच्चे आत्मकि सुख अर्थात् मोक्ष मार्ग के दातार है वास्ते पहिले कैवल्यज्ञानका महोत्सव करना जरूरी है इधर माता मरूदेवाको भी खबर दे दी कि
आपका प्यारा पुत्र वडा ही ऐश्वर्य संयुक्त पुरिमतालोद्यानमें पधार गये है यह सुन माता स्नान मजन कर भरतको साथ ले हस्सीके उपर हो में बैठ के पुत्रदर्शन करनेको समवसरणमें आई भरतने उंचा हाथ कर दादीजीको बतलाया कि वह रत्नसिंहासनपर आपके पुत्र ऋषभ देव विराजमान है माताने प्रथम तो स्नेहयुक्त बहुत उपालंभ दीया. बाद वीतराग की मुद्रा देख आत्मभावना व क्षपकश्रेणि और शुक्ल ध्यान ध्याती हुई को कैवल्यज्ञान कैवल्यदर्शात्पन्न हुवा, असंख्यात कालसे भरतक्षेत्रके लिये जो मुक्ति के दर्वाजे बन्ध थे उसको खोलने कों अर्थात् नाशमान शरीरको हस्तीपर छोड सबसे प्रथम आप ही मोक्षमें जा विराजमान हुइ मानो ऋषभदेव भगवान् अपनी माताको मोक्ष भेजने के लिये ही यहां पधारे थे. तत्पश्चात् चौसठ इन्द्रों और सुरासुर नर विद्याधरोंसे पूजित-भगवान् ऋषभदेवने चार प्रकार के देव व चार प्रकार कि देवियों व मनुष्य मनुध्यणि और तीर्यच तीयेचनि आदि विशाल परिषदा में अपना दिव्य ज्ञानद्वारा उच्चस्वर से भवतारणि अतीव गांभिर्य मधुर और सर्व भाव प्रकाश करनेवाली जो नर अमर पशु पक्षी आदि सबके समजमें आ जावे वैसी धर्मदेशना दी जिस्में स्याद्वाद, नय निक्षेप द्रव्य-गुणपर्याय कारणकार्य निश्चय व्यवहार जीवादि नौतत्त्व षद्रव्य लोकालोक स्वर्ग मृत्यु पाताल का स्वरूप, व सुकृतकर्मका सुकृतफल दुःकृतकर्मका दु: