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केवल्य महोत्सव.
(१३) ओमें इन्द्रका आदेशसे व्यन्तरदेवोने भगवान् के सदृश तीन प्रतिबिंब ( मूर्तियों ) विराजमान कर दी चोतरफ के दरवाजासे श्रानेवाले सबको भगवान्का दर्शन होता था और सब लौक जानते थे कि भगवान हमारे ही सन्मुख है योजन प्रमाण समवसरणमें स्वच्छ जल सुगन्ध पुष्प और दशांगी धूप वगैरह सब देवोंने तीर्थकरों की भक्ति के लिये कीया था। ____ भगवान् के चार अतिशय जन्मसे, एकादश ज्ञानोत्पन्नसे और १६ देवकृत एवं चौंतीस अतिशय व अनंत ज्ञान अनंत दर्शन अनंत चारित्र अनंत लब्धि अशोकवृक्ष भामंडल स्फिटक सिंहासन
आकाशमें देववाणि (उद्घोषणा ) पांच वर्णके घुटने प्रम्मणे पुष्प तीनछत्र चौसट इन्द्र दोनो तर्फ चमर कर रहै इत्यादि असंख्य देव देवि नर विद्याधरोसे पूजित जिनोके गुण ही अगम्य है ? - इधर माता मरूदेवा चिरकालसे ऋषभदेवकी राह देख रहीथी कभी कभी भरतको कहा करती थी कि हे भरत ? तु तो राजमें मग्न हो रहा है कभी मेरे पुत्र ऋषभ कि भी खबर मंगवाइ है ? उसका क्या हाल होता होगा ? इत्यादि।
भरत महाराजा के पास एक तरफ से पिताजीको कैवल्यज्ञानोत्पन्न कि वधाई आइ. दूसरी तरफ आयुधशाळामे चक्ररत्न उत्पन्न होने की खुश खबर मीली, तीसरी तरफ पुत्र प्राप्ति कि वधाई मीली. अब पहेला महोत्सव किसका करना चाहिये ? विचार करने पर यह निश्चय हुवा कि पुत्र और चक्ररत्न तो पुन्याधिन है इस