SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६० ) जैन जाति महोदय. व्याख्यान हुए | उदयपुर से आपश्री केशरियानाथजी की यात्रार्थ पधारे | पुन: उदयपुर पधारने पर आपश्री के चार व्याख्यान हुए । उदयपुर श्रीसंघ की इच्छा थी कि आप चातुर्मास वहाँ करें पर मुनि गुणसुन्दरजी की अस्वस्थता के कारण आप वहाँ अधिक नहीं ठहर सके | अतः वापस सायरा पधारे आप के वहाँ जाहिर व्याख्यान हुए और वहाँ जैन लायब्रेरी की स्थापना भी हुई। वहाँ से भानपुरा हो सादड़ी, मुंडारे, लाठाडे, लुनावा, सेवाडी, और हो बीजापुर वीसलपुर पधारे । वहाँ अठाई महोत्सव शांतिस्नात्र तथा दो मूर्त्तियों की प्रतिष्ठा हुई । स्थाननकवासि जीवनलाल को जैन दीक्षा दे उन का नाम आपने जिनसुन्दर रक्खा | फिर शिवगंज, सुमेरपुर, पेरवा, और बाली हो आप सादड़ी पधारें । विक्रम संवत् १६८५ का चातुर्मास (सादड़ी मारवाड़) । आपश्री का 'बाईसवाँ चातुर्मास बड़े समारोह से सादड़ी मारवाड़ में हुआ | व्याख्यान में आप पूजा प्रभावना वरघोड़ा आदि बड़े ही महोत्सव के साथ प्रारंभ किया हुवा श्री भगवतीजी सूत्र ऐसी मनोहर भाषा में फरमाते थे किं व्याख्यान भवन में श्रोताओं का समाना कठिन होता था । ऐसे भीड़ भरे भवन में भगवतीजी के उपदेश से जिन कई भव्य जीवोंने लाभ लिया था वे वास्तव में बड़े भाग्यशाली थे । आपकी देशना सुनने से मि ध्यात्वियाँ के मन के संदेह सदा के लिये दूर हो जाते हैं। आप के प्रखर प्रताप तथा विद्वता के आगे मिध्यात्वी हार मानते हैं। इस वर्ष आपने तपस्या में छठु १ तथा कुछ फुटकल उपवास किये थे 1
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy