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________________ लेखक का परिचय. . (५९) बात थी । व्याख्यान में आप पूजा प्रभावना वरघोड़ादि महामहोत्सवपूर्वक सूत्रश्री भगवतीजी सुनाते थे । प्रत्येक श्रोता संतोषित था आप की मधुर वाणीने सब के हृदय में सहज ही स्थान पालिया था । व्याख्यान परिषद में पूरा जमघट होता था। पाप दृष्टांत तथा Reference प्रमाण प्रादि की प्रणाली से उपदेश दे कर जन मन को मोह लेते थे। व्याख्यान का प्रभाव भी कुछ कम नहीं पड़ता था। जैनेत्तर लोगोंपर भी काफी प्रभाव पड़ता था। ज्ञानाभ्यास, ऐतिहासिक खोज, पुस्तकों के सम्पादन तथा लेखन के अतिरिक्त आपने अठम १, छ? २ तथा कई उपवास भी इस चातुर्मास में किये । साथ साथ ग्रंथ प्रकाशन का कार्य भी जारी था । इस वर्ष निम्नलिखित पुस्तकें प्रकाशित हुई। १००० धर्मवीर जिनदत्त सेठ । १००० मुखवत्रिका निर्णय निरीक्षण । १००० प्राचीन छन्दावली भाग प्रथम । ३००० कुल तीन सहस्र पुस्तकें । बीलाड़ा से विहार कर आप खारीया, कालोना, बीलावस पाली, गुंदोज, बरकाणा पधार कर विद्याप्रेमी प्राचार्य श्रीविजयबल्लभसूरिजी के दर्शन और तीर्थयात्रा की बाद रानी स्टेशन, नाडोल, नारलाई, देसूरी, घाणेराव, सादड़ी, राणकपुर और भानपुरा होते हुए माप श्री उदयपुर पधारे । वहाँ भाप का स्वागत बड़े समारोह के साथ हुआ। वहाँ की जनता में भाप के तीन सार्वजनिक
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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