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________________ लेखक का परिचय. सूत्र भगवती व्याख्यान द्वारा फरमावे | विस्तारपूर्वक अर्थ खूब समझावे | तपस्याकी लगी है झड़ी अच्छा रंग वर्षे । पौषध पंचरंगी कर कर श्रावक हर्षे । शासन पर पूरा प्रेम उन्नति भारी || श्री ज्ञान० ।। ६ ।। ( ४३ ) दोनों पर्युषण हिल मिल के सहु कीना । हुवा धर्म तणा उद्योत लाभ बहु लीना || रुपैये दो हज़ार ज्ञानमें आये । चौतीस हजार मिल पुस्तकें खूब छपाये || सार्थ का नाम जाउँ बलिहारी || श्री ज्ञान० ॥ ७ ॥ कर्म उदित अन्तराय हमारे आई । नैत्रोंकी पीडा आप बहु थी पाइ वैद्योंसे था ईलाज बहुत करवाया ! | श्रावक लोगोंने भक्ति फर्ज़ बजाया । दुष्ट कर्म गये दूर दशा शुभ कारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ ८ ॥ पूरण भगवती वांची मुनिवर भारी । सोना रूपा से पूजे नर अरु नारी ॥ वरघोड़ा से आगम शिखर चढायो । स्व - परमत जन जै जैकार मनायो || मधुर देशना वर्षे अमृत धारी || श्री ज्ञान० ॥ ६ ॥ कारण आपके संघ श्राग्रह बहु कीनो 1 साल इठन्तर चौमासे यश लीनो ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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