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लेखक का परिचय.
सूत्र भगवती व्याख्यान द्वारा फरमावे | विस्तारपूर्वक अर्थ खूब समझावे | तपस्याकी लगी है झड़ी अच्छा रंग वर्षे । पौषध पंचरंगी कर कर श्रावक हर्षे ।
शासन पर पूरा प्रेम उन्नति भारी || श्री ज्ञान० ।। ६ ।।
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दोनों पर्युषण हिल मिल के सहु कीना ।
हुवा धर्म तणा उद्योत लाभ बहु लीना || रुपैये दो हज़ार ज्ञानमें आये ।
चौतीस हजार मिल पुस्तकें खूब छपाये ||
सार्थ का नाम जाउँ बलिहारी || श्री ज्ञान० ॥ ७ ॥
कर्म उदित अन्तराय हमारे आई ।
नैत्रोंकी पीडा आप बहु थी पाइ
वैद्योंसे था ईलाज बहुत करवाया ! | श्रावक लोगोंने भक्ति फर्ज़ बजाया ।
दुष्ट कर्म गये दूर दशा शुभ कारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ ८ ॥
पूरण भगवती वांची मुनिवर भारी ।
सोना रूपा से पूजे नर अरु नारी ॥ वरघोड़ा से आगम शिखर चढायो ।
स्व - परमत जन जै जैकार मनायो ||
मधुर देशना वर्षे अमृत धारी || श्री ज्ञान० ॥ ६ ॥
कारण आपके संघ श्राग्रह बहु कीनो 1 साल इठन्तर चौमासे यश लीनो ॥