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लेखक का परिचय.
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इस से स्पष्ट प्रकट होता है कि इस क्षेत्र में आपश्री एकेले होने पर भी कितनी तेजी से कार्य कर रहे हैं। आपने संगठन की आवश्यक्ता समझ कर यहाँ " जैन नवयुवक प्रेम मण्डल " की स्थापना की ।
विक्रम संवत १६७८ का चातुर्मास ( फलोधी ) ।
चापश्री का पंद्रहवाँ चातुर्मास भी कारण विशेष से पुनः इसी नगर में हुआ । व्याख्यान में आप नित्य प्रातः काल उत्तराध्ययनजी सूत्र और आगमसार की गवेषणा पूर्वक वांचना करते थे । आपकी समझाने की शक्ति इस ढंग की थी जो संदेह को भेद डालती थी । आगमाभृतका पान करा कर आपने परम शांति का साम्राज्य स्थापित कर दिया था । आप एक आगम पढ़ते समय अन्य विविध श्रागमों का इस प्रकार समयोचित वर्णन करते थे कि हृदय को ऐसा प्रतीत होता था मानो सारे आगमों की सरिता प्रवाहित हो रही है ।
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ज्ञानाभ्यास के साथ इस चातुर्मास में आपने इस प्रकार तपस्या भी की थी । तेले ५, छठ्ठ ३ तथा फुटकुल उपवास आदि । पुस्तकों का प्रकाशन इस बार इस प्रकार हुश्चा | आपश्री की बनाई हुई पुस्तकें जैन समाज के सम्मुख उपस्थित हो रही थीं । आपके समय का अधिकाँश भाग लिखने में बीतता था । यह प्रयत्न अब तक भी अविरल रूप से जारी है। ऐसा कोई वर्ष नहीं बीतता कि कमसे कम ४-५ पुस्तकें आप की बनाई हुई प्रकट न हों - इस वर्ष की पुस्तकें