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जनामा
जैनाचार्य और मुनिवर्ग. (१६३) होना मुश्किल है जरा अपने भाई दिगम्बरियों की तरफ देखिए उनके ५-१० घर होनेपर भी मन्दिरजी की पूजा पक्षान के लिए अमुक दिन अमुक पूजारी नियत हुआ हो उस को उस दिन पूजा करनी ही पड़ती है पर हमारे श्वेताम्बर समाजमें तो चाहे गांवमें दोसौ चारसौ घर होंगे तो भी उन को इतनी फुर्सत नही है कि वे पूजारियों के विगर ही आप स्वयं पूजा पक्षाल करलें । हां! यदि पूजारी है तो पूर्व जमाना की माफिक काजा कचरा निकालें, बरतन चिगग, भारती, दीपक आदि माँज के साफ रक्खें इत्यादि बाहर का काम पूजारीसे लेना चाहिये । मगर सेवापूना पक्षाल तो श्रावक लोग अपने हाथोंसे ही करें तब हो यह भाशातना मिट सके और जैन समाज सब तरहसे सुखी हो, अपना जीवन आनन्दमंगल सहित पवित्र बना सके । उमेद है कि हमारे समाज अग्रेसरों का ध्यान इस तरफ शीघ्र ही आकर्षित हो इस कार्यमें सुधाग कर समाज को सुखी बनावेंगे ?
(२२) जैनाचार्य और मुनिवर्ग।
पूर्व जमाने में प्राचार्यपद उन्ही महापुरुषों को अर्पण किया जाता था कि जिन के अन्दर उतनी योग्यता हो, बात भी ठीक है कि प्राचार्यपद कोइ बच्चों का खेल नहीं है कि हरेक को दे दिया जाय, प्रत्युत प्राचार्यपद लेना एक सम्पूर्ण समाज की जुम्मेवारी अपने शिर उठानी है न कि केवल संघपर हकुमत