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________________ आदर्श- ज्ञान द्वितीय खण्ड ६२८ ५०० मील से चलाकर आये हैं, अतः आपकी भी राय लेना वश्यक है | यह बात सबके जच गई । नेमीचंदजी, शोभागमलजी गोलेच्छा, मेघराजजी मुनौयत, नोगराजजी वैद्य मेहता, तथा समीरमलजी उदयचंदजी बीकानेरवाले एवं छः श्रावक मुनिश्री के पास आये और बोर्डिंग के विषय में पूछा, तो मुनिश्री ने कहा कि परम योगीराज की कृपा से मारवाड़ में यह कल्प वृक्ष खड़ा हुआ है, अतः इसको जैसे बने वैसे चलाना ही चाहिये; गुरु महाराज ने मुझे खास इसीलिए भेजा है और मैं ताकीदी से ५०० मील चलकर आया हूँ, अतः बोर्डिंग किसी भी हालत में नहीं उठना चाहिये | श्रावकः -- 'नहीं उठना चाहिये' यह तो हम भी चाहते हैं, पर द्रव्य बिना खर्चा चल नहीं सकता है, अतः इसके लिए क्या करना चाहिये ? मुनि:- आप अपने घर में साते रहोगे तब तो आपको कोई रुपये लाकर नहीं देवेगा, यदि आप चार सज्जन कहीं भी जाओ तो रुपयों की कमी नहीं है । बोर्डिंग से विद्या प्रचार तो है ही पर वह इस तीर्थ की उन्नति एवं प्रसिद्धि का भी एक प्रधान कारण है । बड़े अफसोस की बात है कि आप लोग इतने धनाढ्य होते हुए भी क्या एक बोर्डिंग को नहीं चला सकते हो ? यदि सच्चा दिल की लग्न वाला एक श्रादमी भी विचार ले तो ऐसे बोर्डिंग को चला सकता है, इत्यादि । मुनिश्री के कहने का थोड़ा-बहुत प्रभाव हुआ तो सही, पर वे लोग बोले, खैर, इसको फिर कल विचारेंगे। दूसरे दिन समीरमलजी, उदयचन्दजी मुनिश्री के पास आये
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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