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________________ ६२७ ओसिर्या के बोर्डिंग का विचार का फिलहाल मन्दिरों से रकम दिलवा दूंगा; बाद गुरु महाराज विचार बंबई जाने का है। क्षेत्र स्पर्शना होगी ता मैं भी जाऊँगा; यदि बंबई जाना बन गया तो इस तीर्थ के लिए एवं बोर्डिंग के लिए उपदेश कर सहायता करवा देवें गे। पर मकान बनाने के बाद ऐसी भूमि नहीं है कि जहाँ हाँल बन रुके । मुनीम-ठीक मेरी भी यही राय है; धर्मशाला में इतनी ही शेष जगा है यदि यहाँ एक ही हॉल बन जावे तो ठीक है । मुनिः:- ये यात्री कहां के हैं ? मुनीमः - समीरमलजी सुराणा और उदयचंदजी साब रामपुरिया वगैरह : बीकानेर के श्रावक हैं । जब फलौदी, लोहावट वालों को मालूम हुआ कि मुनिश्री ओसियांजी पधार गये हैं तब तो उनका उत्साह द्विगुणित बढ़ गया, और नहीं आने वाले भी मेले पर शुक्ल पक्ष की द्वितीया को दोपहर की गाड़ी से सैंकड़ों लोग आ पहुँचे । रात्रि के समय बोर्डिंग के लिए एक मीटिंग हुई जिसमें फलौदी, लोहावट और बीकानेर वाले करीब २५ आदमी थे । सबसे पहिले तो यह ही सवाल पेश हुआ किं रकम जमा नहीं है, और रकम बिना बोर्डिंग चल नहीं सकता है; पेढ़ी में ज्यादा रकम है नहीं कि बोर्डिंग में लगाई जावे। फिर भी पेढ़ी से कर्जा लेकर बोडिंग कहां तक चलाया जा सकता है, अतः बोर्डिंग के लिए स्थायी फंड हो जाय तो बोर्डिंग चल सकता है, नहीं ता कल से बोर्डिंग उठा दिया जाय । इस विषय में बहुत सी चर्चा हुई, आखिर यह तय हुआ कि बोर्डिंग के जन्म दाता मुनि श्री
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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