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________________ आदर्श - ज्ञान-द्वितीय खण्ड ६०८ एक ऐसा नवयुवक मंडल तैयार हो जावेगा जो कि इन साधुओं के अखाड़ों को नष्ट भ्रष्ट कर एक ओर फेंक देगा । संपत : - पर आप श्री विजय नेमीसूरिजी को कह कर आये. जो हु सो 'हुआ, अब और इस विषय को किताब के लिए उपयोग रखूंगा । हैं, मुनि०:- इससे क्या हुआ, ਮੈਂਥੋ यह तो नहीं कहा कि जो मेझरनामा छप रहा है उसको नहीं छपावेंगे ? मैंने तो कहा, 'जो हुआ सो हुआ, इसका अर्थ है कि जो मेझरनामा लिखा सो तो लिख दिया, अब इस विषय की किताब के लिए उपयोग रखूंगा । संपत०:--: - महाराज ! आपने विचार तो कर लिया है, पर यहाँ तो आप अकेले हो और वहाँ सब साधु समाज है, समाज के बड़े २ सेठिया इनके हाथ में हैं । कभी लालन एवं बेचरदास वाली तो न हो गुजरे ? मुनिः : - इस बात की हमको परवाह नहीं है, सत्य कहने में मैं एक कदम भी पीछे हटने वाला नहीं हूँ । सत्य की शोध में मैंने घर छोड़ा, सत्य की शोध में मैंने ढूंढ़िया ममाज को छोड़ा है तो अब इन हीनाचारी पात्थों से क्या डरना है ? संपत०:- - महाराज ! आप मारवाड़ी हैं, और फलोदी चतुर्मास करने से आपके साथ हमारा धर्मस्नेह भी है, इसलिए कहना है कि जो कुछ करो वह ठीक सोच समझ के ही करना पीछे से पश्चाताप न करना पड़े । मुनि० - क्या मारवाड़ी मैंशाशाह आदि ने गुर्जरों को पराजय नहीं किया है, मेरे ख्याल से तो मारवाड़ी मात्र को अपनी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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